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धैर्य

धैर्य --------------------- प्रकृति अपना काम कितना धैर्य से करती है,देखिए शरद से ग्रीष्म आने का धैर्य,ग्रीष्म से आषाढ़ आने का धैर्य,वृक्षों में फल आने का धैर्य,मृदा निमार्ण में धैर्य ,भू-गार्भिक रत्नों के निर्माण में धैर्य ,बीज का वृक्ष बनने में धैर्य  हम प्रकृति के किसी भी कार्य को देखते हैं,हमे जीवन मे धैर्य धारण करने की सीख सदैव मिलती है । वास्तव में धैर्य जीवन मे सफलता का मुख्य कारक है,मनुष्य को जीवन मे किसी कार्य को करने में धैर्य में होना अनिवार्य है अगर आप ऐसा सोचते है कि आपने आज बीज को मृदा में दफनाया है और कल उससे फल आने लगगे तो यह आपके अस्थिर स्वभाव का परिचायक है । बीज मृदा से संघर्ष करके बाहर निकलता है,उसमे जैसे ही नव-अंकुर आते हैं ,सूर्य की तीक्ष्ण किरणें उसके बदन को अपनी तीखी रोशनी से बेध देती हैं,वह नव-अंकुरित बीज संघर्ष करता है,अपना अस्तित्व बचाएँ रखने के लिए वह सहता है पवन के थपेड़ो को ;वह सहता है बरसात के ओले को,ठिठुरन पैदा करने वाली शरद के प्रकोप को,  वृक्ष बनने तक वह अनेकानेक समस्यओं को सहन करता है;तब कही जाकर वह वृक्ष के रूप में अपना अस्तित्व बनाये रख पाता है,किन्तु अ

सपना

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तानो-बानो से बना एक नाम बना है मेरी पहचान पहचान है अनजान रास्ते भी अनजाने हैं, अनचाही मंज़िल है रास्तो की धूल से फूल बनाना है जीवन को महकाना है संघर्षो को अपनाना है सीमित साधन से असीमित सपने को सजना सवारना है अपने साथ साथ अपनो के लिए जीना है✍️❣️

कैसी स्वतंत्रता?

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आज भी स्वतंत्र भार‍त पर एक प्रश्नचिह्न लगा हुआ है! अगर सचमुच भारत देश स्वतंत्र है, आजाद है तो फिर उस आजादी की, उस स्वतंत्रता की सही मायने में क्या परिभाषा होनी चाहिए, यह आम आदमी की सोच से परे है।  आज़ादी मिले 73 साल हो गये, पर क्या आज़ादी के लिए मर मिटने वालों के सपने पूरे हुए? क्या आज़ादी मिलने के बाद देश मे ऐसा कुछ हुआ ,जिसके लिए हमारे पुरखों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया ।?आज अपने आप से यही सवाल पूछने का दिन है.  आप सभी को स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएँ. ये कैसी स्वतंत्रता ? जहाँ सिसकती माँ भारती अमर शहीदों को पुकारती किसे सुना रहे ये स्वतंत्रता गान? जब तड़प रहा है पूरा हिंदुस्तान। जहाँ, हरदम आतंकबाद का छाया है। बच्चों में न पिता का साया है। जहाँ हर जगह छूटता बचपन है। युवाओं की उम्र पचपन है। भूख से मरते बच्चे हैं। हर तरफ चोर उचक्के हैं। धुँए भरी हर गलियाँ हैं। सुरक्षित नही कलियाँ हैं । जहाँ  रोता,लड़ता मरता किसान है। बेरोजगारी से युवा परेशान है। धक्का खाता बुढापा है। चारो ओर फैला स्यापा है।     प्रदीप मिश्र (जिज्ञासु)  आज बस इतना ही  जय हिंद!! जय भारत! 🙏

माँ

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आज मैं मेरे भगवान के बगल में बगल में लेटा हूँ,वो मेरा ख्याल खुद से ज्यादा ,खुद को भुला के रखता है मैं न खाऊँ अगर तो वो बिना खाये रहता है,मेरे घर आने की आशा में वो पलक बिछाये रहता है,वो भगवान मेरा मेरी "माँ" है। माँ से बढ़कर त्याग और तपस्या की मूरत भला और कौन हो सकता है ?  हम पढ़-लिख लें, बड़े हो कर कुछ बन जाएं इसके लिए वो चुपचाप ना जाने कितनी कुर्बानियां देती है, अपनी ज़रूरतें मार कर हमारे शौक पूरा करती है। यहाँ तक कि संतान बुरा व्यवहार करे तो भी माँ उसका भला ही सोचती है! सचमुच, माँ जैसा कोई नहीं हो सकता! मैं सौभाग्यशाली हूँ कि माता-पिता मेरे साथ सशरीर है,इनकी उपस्थिति ही मेरी सबसे बड़ी ताकत है ।मैं भगवान से कर बद्ध प्रार्थना करता हूँ उनकी आयु दीर्घ हो,वो हमेशा खुश रहे । हे ईश्वर! मुझे इस काबिल बनाना की मैं उनके घावों का मरहम बन सकूँ,उनकी खुशियों की वजह बन सकूँ।  संसार की समस्त माँओ को  के चरणों मे प्रणाम 🙏 माँ  के प्यार की गहराई तो देखो  चोट लगती है हमे और रो देती माँ फिक्र में घर बार बच्चो के ऐसे भूल जाती माँ सुकूँ के दो पल भी अपने लिए नही खोज पाती माँ थककर जब रात क

हम बादल

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    हम बादल धूम-भरे ,काजल धारे, हम हैं काले-बिक़राले बादल। हम है जल की धूम, पवन की चाल । कभी दौड़ते अम्बर में, मृग दौड़े जैसे जंगल मे।। अवनि पर चरण नही रखते,  बन मतवाला गज कभी झूमते।। इनका बनता देख आकार, लगने लगती शक्ल साकार, पहले जलधर फिर जलधार, होने लगती पायस की झंकार।। इनकी एक कडक़ दहाड़ , डर जाते पक्षी,नदी ,पहाड़।।

जब तुम मिलने आती हो

जब तुम आती हो, खिल उठा हृदय , पा प्रेम तुम्हारा निश्चय तब नव अंगों में स्फुरण  जब तुम चलती दिखती हो, अपलक रह जाते स्वार्थी नयन  मुख मौन की मुद्रा लेकर कह पाते कुछ न मर्म वचन जब तुम आती जीवन पथ पर  सौंदर्य-सरस बरसाती मुझ पर  तुम आती हो तो उर अंतर ही अंतर मुस्काता है पर जब जाने की बेला आयी हृदय व्यथा से भर जाता है